नई दिल्ली. गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता बिल में धार्मिक आधार पर भेदभाव से इनकार किया है। सोमवार रात को बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए शाह ने कहा- 1951 में देश में 9.8% मुस्लिम थे, आज 14.23% बढ़कर हो गए हैं। हमने धार्मिक आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया। चर्चा के दौरान एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने नागरिकता संशोधन बिल की कॉपी फाड़ी। ओवैसी ने कहा कि यह बिल एक और बंटवारा करवाने जा रहा है। यह बिल हिटलर के कानून से भी बदतर है। एआईएमआईएम सांसद ने कहा कि अमित शाह चीन से डरते हैं। हालांकि, चेयर पर बैठी रमादेवी ने इस घटना को सदन की कार्यवाही से बाहर करने के निर्देश दिए।
लोकसभा में विपक्ष ने बिल का विरोध किया। शाह ने कहा कि किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। बिल अल्पसंख्यकों के 0.001% भी खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों ने ऐसा किया और तब किसी ने विरोध नहीं किया था। गृह मंत्री ने कहा कि 1947 में पूर्व और पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को भारत ने नागरिकता दी थी, तभी मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री और लाल कृष्ण आडवाणी उप-प्रधानमंत्री बन सके। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस यह साबित कर दे कि बिल भेदभाव करता है, तो मैं इसे वापस ले लूंगा। शाह ने कहा, "पक्ष और विपक्ष दोनों दलों के 48 सांसदों ने बिल पर अपनी बात रखी। यह बिल लाखों-करोड़ों शरणार्थियों के यातनापूर्ण जीवन से मुक्ति दिलाने का साधन बनने जा रहा है। ऐसे लोगों नागरिकता और सम्मान दिलाने का काम यह बिल करेगा।'
अमित शाह के जवाब
- धार्मिक आधार पर भेदभाव को लेकर: शाह ने कहा कि यह बिल किसी भी तरह से अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। बिल में कहीं भी मुस्लिमों का जिक्र नहीं है। अगर कांग्रेस धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं करती तो नागरिकता बिल लाने की जरूरत ही नहीं होती।
- अनुच्छेद 14 के उल्लंघन को लेकर: अगर समानता का कानून होगा तो अल्पसंख्यक के लिए विशेषाधिकार कैसे होंगे? उन्हें जो शिक्षा और अन्य चीजों का अधिकार मिला है, क्या उसमें आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं होता? जितने भी अनुच्छेद के उल्लंघन की बात की गई हैं, उन्हें ध्यान में रखकर ही बिल ड्राफ्ट हुआ है।
- गैर-मुस्लिमों को नागरिकता के मुद्दे पर: अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक, वह देश इस्लामिक है। पाकिस्तान भी इस्लामिक है। वहीं, बांग्लादेश के संविधान में भी धर्म इस्लाम लिखा गया है। मैं इसका जिक्र कर रहा हूं, क्योंकि इन तीनों देशों के संविधान में धर्म का जिक्र है। शरणार्थियों का इन तीनों देशों से यहां-वहां आना जाना हुआ। नेहरू-लियाकत समझौते में भारत-पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को सुरक्षित करने पर सहमति बनी। भारत में समझौते का पालन हुआ, लेकिन पाकिस्तान में उनके साथ प्रताड़ना हुई। हिंदू, सिख, जैन, पारसियों को परेशान किया गया। पाकिस्तान में मुस्लिमों पर अत्याचार नहीं होता है।
- प्रताड़ित मुस्लिमों को शरण देने पर: शाह ने कहा कि अगर 3 पड़ोसी देशों से कोई मुस्लिम धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर नागरिकता की मांग करेगा, तो हम खुले मन से विचार करेंगे।
शाह ने कहा- धर्म के आधार पर विभाजन न होता, तो बिल नहीं लाना पड़ता
- यह बिल किसी धर्म के प्रति भेदभाव से युक्त नहीं है, यह केवल अल्पसंख्यकों के लिए सकारात्मक भाव लेकर आया है। जो प्रताड़ित है वह शरण में आता है। शरणार्थियों को घुसपैठिया नहीं कह सकते हैं। आर्टिकल 14, 21, 25 का उल्लंघन नहीं करता।
- अच्छा होता कि कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर न हुआ होता। ऐसा न होता, तो बिल लेकर आने की जरूरत नहीं पड़ती। वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए कि विभाजन धर्म के आधार पर हुआ। जिस हिस्से में मुस्लिम ज्यादा रहते थे, उसे पाकिस्तान बनाया गया और बचा हुआ हिस्सा भारत के नाम से प्रस्तावित हुआ। फिर पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान बना।
- 1950 में दिल्ली में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ। यह तय हुआ कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों को जाने देंगे। यह बिल की पृष्ठभूमि है। दोनों देशों की सरकारों ने एक-दूसरे को विश्वास दिलाया था कि पाकिस्तान में जो अल्पसंख्यक हैं, उनका वहां ध्यान रखा जाएगा। भारत में जो अल्पसंख्यक हैं, उनका हमें ध्यान रखना है। ऐसा हुआ नहीं, समझौता धरा का धरा रह गया।
- अफगानिस्तान के अनुच्छेद 2 में उल्लेख है कि इस्लाम देश का धर्म है। पाकिस्तान के अनुच्छेद 2 में लिखा है कि देश का धर्म इस्लाम होगा। बांग्लादेश जब बना, तब उसका संविधान सेकुलर था। 1988 में बदलाव कर कहा गया कि देश का धर्म इस्लाम है। इसी से वहां अल्पसंख्यकों को न्याय मिलने की संभावना क्षीण हो जाती है।
- 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23% थी और 2011 में 3.7% हो गई। बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22% और 2011 में 7.8% हो गई। ये लोग कहां गए। मार दिए गए, धर्म परिवर्तन हुआ, भगा दिए गए। विरोध करने वाले बताएं कि इन अल्पसंख्यकों का क्या दोष है। हम चाहते हैं कि उनका अस्तित्व बना रहे। वे सम्मान के साथ दुनिया के सामने खड़े हों।
- भारत के अंदर 1951 में 84% हिंदू था और 2011 में वह 79% हो गया। मुस्लिम 1951 में 9.8% थे और आज 14.23% है। हमने किसी के साथ धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया। आगे भी किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। लेकिन, पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर प्रताड़ना दी जाती है तो भारत मुंह नहीं देखता रहेगा।
- आर्टिकल 14 में कहा गया है कि ऐसे कानून जिनमें समानता का कानून न हो, उसे बनाने का अधिकार नहीं है। लेकिन, नागरिकता संशोधन बिल सभी अल्पसंख्यकों के लिए है। केवल सिख, ईसाई, बौध के लिए करते तो आर्टिकल 14 आता बीच में। लेकिन, अगर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए ऐसा करते हैं तो आर्टिकल 14 बीच में नहीं आता।
- महात्मा गांधी ने कहा था कि देश के टुकड़े होंगे तो मेरे शव पर होंगे। कांग्रेस ने धर्म बंटवारे को स्वीकार किया था। यह ऐतिहासिक सत्य है। दयानिधि मारन ने कहा कि श्रीलंका के लोगों को क्यों नहीं दिया। मैंने कहा कि अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोगों को नागरिकता दी गई। लाल बहादुर शास्त्री और भंडारनायके के बीच 1964 में जो समझौता हुआ, श्रीलंका के लोगों को नागरिकता दी गई।
- अल्पसंख्यकों को व्याख्या को संकुचित बताया गया। ऐसा नहीं है। ये पूरा विधेयक 3 देशों के अल्पसंख्यकों के लिए है। यह वहां के संविधान का सत्य है कि मुस्लिम वहां अल्पसंख्यक नहीं है। तीनों देशों का धर्म जब इस्लाम होगा तो वे वहां मुस्लिम अल्पसंख्यक कैसे होंगे। भारत में इतने मुसलमान हैं, सब जी रहे हैं। उन 3 देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं है, अगर होते तो उन्हें भी स्वीकार करते। वहां के मुस्लिम के साथ भेदभाव नहीं कर रहे। अल्पसंख्यकों में कोई डर की भावना नहीं है। अगर थोड़ा बहुत है भी तो मैं विश्वास दिलाया हूं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए किसी भी धर्म के नागरिक को डरने की जरूरत नहीं है।
- बंकिम चंद्र चटर्जी, टैगोर और विवेकानंद की बात कही गई। क्या इन लोगों ने ऐसे बंगाल की कल्पना की थी, जहां दुर्गापूजा के लिए कोर्ट में जाना पड़े। अब ये गुस्सा क्यों हो गए, मैंने तो तृणमूल को कुछ कहा ही नहीं (तृणमूल सांसदों ने हंगामा किया)। एनआरसी और नागरिकता बिल को जाल बताया गया। ऐसा नहीं है। ये उन लोगों को जाल जरूर लग सकता है, जो वोटबैंक के लिए घुसपैठियों को शरण देना चाहते हैं। हम उन्हें सफल नहीं होने देंगे। बंगाल के सारे सदस्यों से कहना चाहता हूं कि लाखों लोगों को नागरिकता मिलने वाली हैं, वे बंगाली हैं।
मनीष तिवारी ने कहा- कांग्रेस नहीं, 1935 में सावरकर ने बंटवारे का सुझाव दिया था
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा- नागरिकता संशोधन बिल शरणार्थियों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला है और यह संविधान, संविधान की भावना और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की विचारधारा के खिलाफ है। सरकार एक ऐसा उपाय लेकर आई है, जिसका राजनीतिक मतलब सभी जानते हैं। धर्मनिरपेक्षता संविधान में निहित है। इसका विशेषतौर पर जिक्र किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के समझौते के अनुसार भी सरकार शरणार्थियों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। हम पर भारत के बंटवारे का आरोप लगाया जा रहा है, लेकिन वह सारकर थे, जिन्होंने 1935 में हिंदू महासभा की बैठक के दौरान बंटवारे का सुझाव दिया था।
एक और बंटवारा करवाने जा रहा है नागरिकता संशोधन बिल- ओवैसी
ओवैसी ने कहा, "असम के एनआरसी की नजर से इस बिल को देखा जाना चाहिए। असम एनआरसी में 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए। बिल के हिसाब से बंगाल में जितने हिंदुओं के खिलाफ केस चल रहे हैं, सब बंद हो जाएंगे। मुसलमानों के खिलाफ केस चलेगा। क्या यह भेदभाव नहीं है? सरकार ने मुस्लिमों को बगैर मल्लाह की कश्ती में सवार कर दिया है, लेकिन हम दरिया पार करके दिखाएंगे। भारत का एक तिहाई हिस्सा चीन के कब्जे में है, लेकिन हमारी सरकार उनसे कुछ नहीं कहती। केंद्र सरकार चीन से इतना क्यों डरती है। चीन ने पूरा अक्साईचिन हथिया रखा है। क्या गारंटी है कि जो हिंदू पाकिस्तान से आएंगे, उनकी नीयत सही होगी। पाकिस्तान को भारत के मुस्लिमों और अपने यहां के हिंदुओं से मतलब नहीं है। उसे तो अपना काम करना है और वह यह हर हाल में करेगा। यह बिल देश में एक और बंटवारा करवाने जा रहा है। यह बिल हिटलर के कानून से भी बदतर है और इसलिए मैं यह बिल फाड़ रहा हूं।'
सदन में बिल पेश करने के लिए वोटिंग हुई
कांग्रेस समेत 11 विपक्षी दल बिल का विरोध कर रहे हैं। जदयू, लोजपा और बीजद ने बिल का समर्थन किया। सूत्रों के मुताबिक, महाराष्ट्र में सरकार गठन के मुद्दे पर एनडीए से अलग हुई शिवसेना ने भी बिल पेश करने के पक्ष में वोटिंग की। बिल को सदन में पेश करने के लिए भी वोटिंग हुई। बिल पेश करने के पक्ष में 293 और विरोध में 82 वोट पड़े। 375 सांसदों ने वोटिंग में हिस्सा लिया।
विपक्षी दलों की मांग है कि नेपाल और श्रीलंका के मुस्लिमों को भी इसमें शामिल किया जाए। इस बिल को अल्पसंख्यकों के खिलाफ और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया जा रहा है।